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अयोध्या, काशी और मथुरा सौंपने में विफल रहे मुसलमान, इसलिए जगह-जगह हो रही मंदिर निर्माण

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विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने गुरुवार को बताया कि आखिर वह कौन सी वजह है जिसके कारण हिंदू समुदाय द्वारा मुस्लिम स्मारकों पर अधिकार का दावा किया जा रहा है और इसको लेकर अदालतों में याचिकाएं दायर की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुओं में इस बात को लेकर नाराजगी हो सकती है कि मुस्लिम समुदाय की ओर से अयोध्या, मथुरा और काशी में विवादित स्थलों को स्वेच्छा से हिंदुओं को नहीं सौंपा गया।

विहिप के महासचिव मिलिंद परांडे ने कहा, “1984 में एक धर्म संसद का आयोजन किया गया था। इसमें कहा गया था, ‘अयोध्या, काशी और मथुरा हमें दे दो और फिर अन्य मुद्दों पर कोई हलचल नहीं होगी। अब 2025 आने वाला है। 1984 में जो प्रस्तावित किया गया था, वह अभी तक लागू नहीं हो सका है। इसलिए, जो नाराजगी समाज में दिख रही है, वह शायद इसके प्रमुख कारणों में से एक है।”

उन्होंने मोहन भागवत के बयान पर भी प्रतिक्रिया दी। परांडे ने कहा, “पहले मोहन भागवत जी ने काशी और मथुरा के बारे में बात की थी और उनका (हालिया) बयान उसी संदर्भ में समझा जाना चाहिए।” भागवत ने कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं के विश्वास का विषय है, लेकिन नए मुद्दों को दैनिक आधार पर उठाना नफरत, द्वेष और शक के कारण अस्वीकार्य है। कुछ हिंदू धार्मिक नेताओं ने यह कहा कि संघ को हिंदू समाज को यह नहीं बताना चाहिए कि उसे क्या करना चाहिए। इस पर परांडे ने कहा, “हम संतों पर टिप्पणी नहीं करते।”

मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण पर परांडे विहिप ने सरकार के मंदिरों पर नियंत्रण के मुद्दे पर भी बात की। परांडे ने बताया, “हम इस बारे में एक देशव्यापी जन जागरूकता अभियान 5 जनवरी 2025 से शुरू करने जा रहे हैं। इस अभियान का आह्वान विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश में लाखों लोगों की एक विशेष और विशाल सभा हैंदव शंखारवम में किया जाएगा।” संस्था ने एक मसौदा कानून भी तैयार किया है, जिसे मंदिरों को समाज को सौंपने और उनके प्रबंधन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए तैयार किया गया है। परांडे ने कहा कि पिछले सप्ताह संस्था का एक प्रतिनिधिमंडल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से मिला और उन्हें यह मसौदा कानून सौंपा। क्या है विहिप की मांगें? विहिप ने मंदिरों को समाज को सौंपे जाने से पहले कुछ मांगों की सूची भी सार्वजनिक की है

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