इस मंदिर के निर्माण में 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल तक काम किया लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया. जिसके बाद मुख्य शिल्पकार दिसुमुहराना के बेटे धर्मपदा ने निर्माण पूरा किया और मंदिर बनने के बाद उन्होंने चंद्रभागा नदी में कूदकर जान दे दी.
भारत का सबसे रहस्यमय सूर्य मंदिर ओडिशा में है जो कि कलिंग शैली में बना है और जिसे बनाने वाले कारीगर नदी में कूद गया था. दुनियाभर से टूरिस्ट इस सूर्य मंदिर को देखने के लिए आते हैं. इस मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है. इस सूर्य मंदिर का नाम है कोणार्क सूर्य मंदिर है. यह सूर्य मंदिर 772 साल पुराना है और बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से बना हुआ है. कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी में है. यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है. इस मंदिर का निर्माण 1250 ई. में गांग वंश राजा नरसिंहदेव प्रथम ने कराया था. अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में लिखा है कि राजा नरसिंह देव ने 12 साल के पूरे राजस्व को मंदिर के निर्माण में लगा दिया था.
इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर ऐसे बनाया गया है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है. यह मंदिर कलिंग शैली में निर्मित है और इसकी संरचना रथ के आकार की है. रथ में कुल 12 जोड़ी पहिए हैं. एक पहिए का व्यास करीब 3 मीटर है. इन पहियों को धूप धड़ी भी कहते हैं, क्योंकि ये वक्त बताने का काम करते हैं. इस रथ में सात घोड़े हैं, जिनको सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक माना जाता है.
कोणार्क सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो मूर्तियां हैं, जिसमें सिंह के नीचे हाथी है और हाथी के नीचे मानव शरीर है. मान्यता है कि इस मंदिर के करीब 2 किलोमीटर उत्तर में चंद्रभागा नदी बहती थी जो अब विलुप्त हो गई है. ऐसी कहावत है कि इस मंदिर के निर्माण में 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल तक काम किया लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया. जिसके बाद मुख्य शिल्पकार दिसुमुहराना के बेटे धर्मपदा ने निर्माण पूरा किया और मंदिर बनने के बाद उन्होंने चंद्रभागा नदी में कूदकर जान दे दी.
















