सोमवार को ग्रेप चार की पाबंदियां हटाने को लेकर विचार किया जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि मौसमी बदलाव से वायु गुणवत्ता में सुधार और एक्यूआइ में गिरावट दर्ज की गई है। अब यह ”गंभीर” श्रेणी से गिरकर ”बहुत खराब” श्रेणी में आ गया है। अगले तीन दिन तक यही स्थिति बने रहने का भी पूर्वानुमान है।
वहीं, ऐसे में सोमवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) की उप समिति बैठक कर सकती है। इस बैठक में ग्रेप चार की पाबंदियां हटाए जाने का निर्णय लिया जा सकता है।
मालूम हो कि पिछले सोमवार सुबह आठ बजे से ग्रेप चार की पाबंदियां लगी हुई हैं। इसके तहत दिल्ली में ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा है। एनसीआर में सड़क, फ्लाईओवर सहित विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण कार्य पर भी रोक लगी हुई है। स्कूल खोले जा सकते हैं और वर्क फ्राम होम भी फिलहाल खत्म किया जा सकता है।
2.8 हजार लोगों ने सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा देने पर दिया बल
प्रदूषण से जंग में दिल्ली वासी पौधारोपण को कारगर उपाय मानते हैं। उनका कहना है कि अधिक से अधिक पौधारोपण करके प्रदूषण के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। हालांकि लोग दफ्तरों के समय में बदलाव को बहुत प्रभावी उपाय नहीं मानते।
जागरण डॉट कॉम द्वारा किए गए एक सर्वे में 7.3 हजार लोगों ने प्रदूषण की रोकथाम के लिए अधिकाधिक पौधा रोपण को सर्वाधिक कारगर उपाय बताया है। दूसरे नंबर पर 2.8 हजार लोगों ने सार्वजनिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने की वकालत की है।
वहीं, तीसरे नंबर पर 1.7 हजार लोगों ने निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही है। एक हजार लोगों ने एयर क्वालिटी मानिटरिंग में सुधार करने की बात रखी है। उनका कहना है कि सही निगरानी से उचित कदम उठाए जा सकेंगे।
वहीं, 803 लोग ऐसे भी हैं जो दिल्ली सरकार द्वारा दफ्तरों का समय बदले जाने को अधिक कारगर नहीं मानते। उनका कहना है कि इस तरह के कदम से बहुत फर्क नहीं पड़ता।
सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनिमता राय चौारी का कहना है कि निस्संदेह सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। लेकिन दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली अपर्याप्त है।
हालांकि, शहर में बसें जोड़ी गई हैं, जो जुलाई 2024 तक 7,683 बसों (1,970 इलेक्ट्रिक बसों सहित) तक पहुंच गई हैं, फिर भी यह 10,000 बसें तैनात करने के सुप्रीम कोर्ट के 1998 के निर्देश से यानी 26 साल बाद भी कम ही है।
बता दें कि वर्तमान में, दिल्ली में प्रति लाख जनसंख्या पर लगभग 45 बसें संचालित होती हैं, जो आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के प्रति लाख जनसंख्या 60 बसों के मानक से कम है। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने भी कहा कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के पीछे मुख्य कारण परिवहन की स्थिति है।
हमें दोष देने पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए
उन्होंने कहा कि दीवाली पर पटाखों पर रोक लगाने की जगह दो सप्ताह के लिए गाड़ियां बंद कर दी जाएं तो हवा कहीं ज्यादा साफ हो सकती है। हमें दोष देने पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए, चाहे वह केंद्र की जिम्मेदारी हो या राज्यों की या किसानों या पटाखों को दोष देना हो। सबसे बड़ा योगदान वाहनों से होने वाला उत्सर्जन ही है और हमें इस समस्या को दूर करने के लिए साल भर प्रयास करने की जरूरत है।
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मालूम हो कि आइआइटीएम पुणे, टेरी-एआरएआइ, सीपीसीबी के रियल टाइम मानिटरिंग डाटा और गूगल मैप से ट्रैफ़िक डाटा सहित विभिन्न निकायों के विश्लेषण के अनुसार दिल्ली में स्थानीय प्रदूषण स्रोत शहर के वायु प्रदूषण का 30.34 प्रतिशत (जिसमें से 50.1 प्रतिशत परिवहन के माध्यम से होता है) के लिए जिम्मेदार हैं। जबकि 34.97 प्रतिशत प्रदूषण पड़ोसी एनसीआर जिलों से और 27.94 प्रतिशत अन्य क्षेत्रों से उत्पन्न होता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के प्रदूषण स्तर में पराली जलाने का योगदान केवल 8.19 प्रतिशत है।