चुनाव आयोग ने दिल्ली के चुनावी समर की घोषणा कर दी है। इससे पहले ही दिल्ली की चुनावी रणभूमि सजने लगी थी। अब इसमें और तेजी आएगी। लोकसभा की तुलना में इस बार दिल्ली का चुनावी परिदृश्य भी कुछ बदला-बदला सा है। लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़ा था।
चुनावी रणभूमि में प्रत्याशी उतार चुकी है AAP
इस चुनाव में एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव मैदान में डटे हैं। इससे दिल्ली विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला के लिए मैदान सजने लगा है। आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता प्राप्त करने के लिए चुनाव मैदान में है।
उसने अपने सभी प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। कांग्रेस के भी 48 प्रत्याशी मैदान में हैं। इस मामले में भाजपा पिछड़ी हुई है। अब तक वह 29 प्रत्याशियों की ही घोषणा कर सकी है।
नई दिल्ली पर केजरीवाल को कौन देगा चुनौती?
आप संयोजक व पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind kejriwal) एक बार फिर से अपनी पुरानी सीट नई दिल्ली से चुनाव लड़ेंगे।
उन्हें चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र पूर्व सांसद संदीप दीक्षित और भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र व पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा को टिकट दिया है। इससे इस क्षेत्र में मुकाबला रोचक हो गया है।
कालकाजी से आतिशी के सामने है कौन?
मुख्यमंत्री आतिशी इस बार भी कालकाजी विधानसभा क्षेत्र से मैदान में हैं। कांग्रेस ने इनके विरुद्ध अपनी राष्ट्रीय महिला मोर्चा अध्यक्ष अलका लांबा को टिकट दिया है। भाजपा ने पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को यहां से प्रत्याशी बनाया है।
इस बार जंगपुरा से चुनाव लड़ रहे मनीष सिसोदिया
वहीं, मनीष सिसोदिया इस बार अपनी सीट पटपड़गंज को छोड़कर जंगपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं। इन्हें घेरने के लिए कांग्रेस ने पूर्व महापौर फरहाद सूरी और भाजपा ने तीन बार विधायक रह चुके तरविंदर सिंह मारवाह को उतारा है।
अगले कुछ दिन में कांग्रेस व भाजपा के बचे हुए प्रत्याशियों की घोषणा होने की उम्मीद है। अब तक टिकट वितरण में सभी पार्टियों ने दूसरे दलों से आने वाले नेताओं को भी प्राथमिकता दी है।
भाजपा प्रत्याशियों की पहली सूची में दल बदलकर आने वाले सात नेताओं के नाम हैं। आप ने 11 और कांग्रेस ने अब तक घोषित तीन दल बदलने वाले नेताओं पर विश्वास किया है।
आप के सामने चौथी बार क्या है चुनौती?
आप के सामने चौथी बार सत्ता प्राप्त करने की चुनौती है। 2012 में पार्टी का उदय हुआ था और 2013 के चुनाव में 28 सीटें जीतकर कांग्रेस के समर्थन से सत्ता प्राप्त की। अरविंद केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री बने।
48 दिनों के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। उसके बाद वर्ष 2015 में 70 में से 67 और वर्ष 2020 में 63 सीटें जीतकर अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन किया। कई नेताओं को जेल जाना पड़ा। केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।
अब सभी प्रमुख नेता जेल से बाहर आकर तीसरी बार सत्ता दिलाने के प्रयास में हैं। महिलाओं के लिए प्रतिमाह 2,100 रुपये और बुजुर्गों को निश्शुल्क उपचार सहित अन्य वादों के सहारे आप चुनाव प्रचार में भी आगे निकल गई है।
1998 के बाद से दिल्ली की सत्ता से दूर है भाजपा
भारतीय जनता पार्टी 1998 के बाद से दिल्ली की सत्ता से दूर है। आमने सामने की लड़ाई तीन चुनाव में वह कांग्रेस से पराजित हुई। वर्ष 2013 में पार्टी 33 सीटें जीतकर भी सत्ता से दूर रह गई थी। वर्ष 2014 और 2019 में लोकसभा की सभी सातों सीटें जीतने के बावजूद उसके कुछ माह बाद हुए दो विधानसभा चुनावों में पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।
इस बार भाजपा ने आप व कांग्रेस के गठबंधन को हराकर सभी सातों सीटें जीतने में सफल रही है। इससे पार्टी के नेता इस चुनाव को लेकर आशांवित लग रहे हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री के एक सरकारी कार्यक्रम और उसके बाद उनकी रैली से कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार हुआ है।
अपनी राजनीतिक जमीन को पाने के प्रयास में है कांग्रेस
कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमीन को प्राप्त करने के प्रयास में है। दिल्ली में आप के उदय के साथ ही कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो गए थे। लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस 2013 में आठ सीटों पर सिमट गई थी। उसके बाद के दो चुनावों में पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका है।
माना जाता है कि कांग्रेस का वोट बैंक अब आप के साथ जुड़ गया है। इसे वापस पाने के लिए कांग्रेस पिछले दो विधानसभा चुनावों की तुलना में इस बार अधिक आक्रामक दिख रही है।
















