भगवान भास्कर के आराधना का लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व आज नहाय खाय के साथ ही शुरुवात हो गया है। इस महापर्व में स्वच्छता व शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। साथ महापर्व मे प्रकृति से मिलने वाले जल,पेड़,फल व अन्न का काफी महत्व है। प्रकृति से मिलने वाले इन्हीं चीजों से प्रसाद की तैयारी की जाती है। जिसे व्रती खुद से प्रसाद के लिए अनाज कूट पीस कर तैयार करती है। वहीं इस महापर्व में बांस की बनी सूप व डाला का उपयोग किया जाता है। इसलिए इस महापर्व को प्रकृति,प्रेम व पूजा के लिए जाना जाता है।
नहाय खाय वाले प्रथम दिन बिना लहसुन प्याज के कद्दू भात खाकर व्रती व्रत का शुरुवात करते हैं।इसके उपरांत दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन अस्ताचल गामी भगवान भास्कर को अर्घ्य व चौथे दिन उदयमान भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के साथ महापर्व का समापन किया जाता है।
धार्मिक व पवित्रता के दृष्टिकोण से मिट्टी को शुद्ध व पावन माना गया है। छठ व्रती खरना का प्रसाद ठेकुआ,गुड़ की खीर व रोटी मिट्टी के चूल्हे पर ही बनाते हैं। प्रकृति से मिलने वाले अनुपम उपहार जल,जमीन,पेड़ पौधे,फल फूल व अन्न के जरिए प्रकृति से मिलन का लोक आस्था का महापर्व छठ माना गया है।
सूर्योपासना की परंपरा वैदिक काल से ही होती रही है। जिसका वर्णन वेदों पुराणों में मिलता है। चूंकि पूरे ब्रह्मांड मे ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र भगवान सूर्य को माना गया है। बिना इसके जीवन,पशु,पक्षी,जीव जन्तु,पेड़ पौधे की परिकल्पना साकार नहीं हो सकती है। सनातन धर्म में भगवान सूर्य का प्रत्यक्ष देव स्वरूप में पूजन होता है।