इस फैसले में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं (हाइड्रोपावर प्रॉजेक्ट्स) को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद, सिंधु जल संधि के तहत उनकी योग्यता के अंतर्गत आते हैं। भारत सरकार इसे अपने रुख और संधि की व्याख्या की पुष्टि के रूप में देखती है क्योंकि वह पाकिस्तान के अनुरोध पर चल रही समानांतर और ‘अवैध रूप से गठित’ मध्यस्थता अदालत की कार्यवाही को मान्यता नहीं देती है और न ही उसमें भाग लेती है।
भारत ने निर्णय का किया स्वागत
तटस्थ विशेषज्ञ के फैसले पर एक आधिकारिक बयान में सरकार ने यह भी कहा कि वह IWT के संशोधन और समीक्षा के लिए पाकिस्तान के संपर्क में है। पिछले साल भारत ने संधि की समीक्षा की मांग के कारणों में से एक के रूप में सीमा पार आतंकवाद का हवाला दिया था। सरकार ने कहा, ‘भारत 1960 की सिंधु जल संधि के अनुबंध एफ के पैराग्राफ 7 के तहत तटस्थ विशेषज्ञ के निर्णय का स्वागत करता है। यह निर्णय भारत के इस रुख की पुष्टि करता है कि किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में तटस्थ विशेषज्ञ को भेजे गए सभी सात प्रश्न, संधि के तहत उनकी योग्यता के अंतर्गत आने वाले मतभेद हैं।’
पाकिस्तान के रुख से नाराज था भारत
भारत इस बात से नाराज था कि वर्ल्ड बैंक द्वारा दोनों देशों से परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्तियों पर गौर करने के लिए पारस्परिक रूप से सहमत तरीका खोजने के लिए कहने के बावजूद इस्लामाबाद ने इस मुद्दे को हल करने के लिए एकतरफा रूप से एक समानांतर प्रक्रिया की मांग की थी। सरकार ने कहा कि यह भारत की ‘स्थायी और सैद्धांतिक’ स्थिति रही है कि केवल तटस्थ विशेषज्ञ ही संधि के तहत इन मतभेदों का फैसला करने के लिए सक्षम हैं। इसने कहा, ‘अपनी स्वयं की क्षमता को बरकरार रखते हुए, जो भारत के विचार से मेल खाती है, तटस्थ विशेषज्ञ अब अपनी कार्यवाही के अगले (गुण-दोष) चरण में आगे बढ़ेंगे। यह चरण सातों मतभेदों में से प्रत्येक के गुण-दोष पर अंतिम निर्णय के साथ समाप्त होगा।’
सरकार ने कहा, ‘संधि की पवित्रता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध होने के कारण भारत तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया में भाग लेना जारी रखेगा ताकि मतभेदों को संधि के प्रावधानों के अनुरूप हल किया जा सके, जो समान मुद्दों पर समानांतर कार्यवाही का प्रावधान नहीं करता है। इसी कारण से, भारत अवैध रूप से गठित मध्यस्थता अदालत की कार्यवाही को मान्यता नहीं देता है और न ही उसमें भाग लेता है।’ सरल शब्दों में समझें तो भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक समझौता है, जिसे सिंधु जल संधि कहते हैं। इस संधि के तहत, कुछ नदियों का पानी भारत को और कुछ का पाकिस्तान को मिलता है।
किस डर से पाकिस्तान ने की शिकायत, जानिए
अब, भारत जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले नदियों पर दो बिजली परियोजनाएं बना रहा है। पाकिस्तान को लगता है कि इन परियोजनाओं से उसे मिलने वाले पानी पर असर पड़ेगा। इसलिए, उसने विश्व बैंक से शिकायत की। विश्व बैंक ने एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया, जिसने कहा कि यह मामला उसकी योग्यता के अंतर्गत आता है। भारत इस फैसले से खुश है क्योंकि वह हमेशा से यही कहता आया है। भारत का मानना है कि सिंधु जल संधि के तहत केवल तटस्थ विशेषज्ञ ही इस मामले का फैसला कर सकता है। पाकिस्तान ने एक अलग अदालत में भी मामला दायर किया था, लेकिन भारत उस अदालत को मान्यता नहीं देता। भारत का कहना है कि वह संधि के नियमों का पालन करेगा और तटस्थ विशेषज्ञ के साथ मिलकर इस मामले को सुलझाएगा।