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मशीनी युग मे हल बैल की जोड़ी पुराने खेती की दिलाती है याद

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मानसून की सक्रियता से हो रही लगातार बारिश से खेतो मे हलचल बढ़ गई है। खेती किसानी में किसानो की सक्रियता बढ़ हैं। कहीं ट्रेक्टर से तो कहीं हल बैल,भैंसा से धान बोआई के लिए खेत तैयार किया जा रहा है। कहीं धान के बिचड़े उखाड़े जाने का कार्य हो रहा है,तो कहीं तैयार खेत में रोपनहार उत्साहित होकर रोपनी कर रही है। धान रोपनी के साथ ही बहियारो में रोपनहारो की मनुहारी कर्णप्रिय सोहर व झूमर गीत की आवाजे आने लगी है। कृषि यंत्रीकरण युग में कहीं कहीं हल बैल की जोड़ी से हो रही खेती को कई युवा कौतूहल वश देखते मिलते हैं,तो वहीं हल बैल से हो रही खेती पुरानी परंपराओं की याद दिलाती है। कृषि यंत्रीकरण के पूर्व खेती का सारा भार बैल और भैंसा के कंधो पर रहता था। किसानों के दरवाजे पर बैल शान व शोभा माना जाता था। जिस किसान के पास जितना बैल होता वो उतना सम्पन्न किसान माने जाते थें। लेकिन बदलते जमाने के साथ कृषि यंत्रीकरण ने बैलों की जगह अपना पहचान बना लिया है। अब खेती का सारा कार्य कम समय में मशीनों से होने लगा है। यदा कदा आज भी छोटे किसानों के पास मौजूद हल बैल की जोड़ी पुरानी परंपराओं की याद दिलाती है।

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