भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (BMMA) ने केंद्र ने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने का समर्थ किया है। हालांकि उन्होंने कहा कि इसे समावेशी बनाया जाए। उन्होंने कहा कि मुस्लिम कानूनों के संहिताकरण से मुस्लिम समाज में सुधार का मार्ग प्रशस्त होगा और सरकार को संहिताकरण प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए, जिससे बहुविवाह और बाल विवाह पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए BMMA कार्यकर्ताओं ने कहा कि अगर केंद्र UCC लाना चाहती है तो हम उसके समर्थन में हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन इसमें मुस्लिम महिलाओं के दृष्टिकोण से 25 सूत्री सुझाव शामिल करे।
दुलहन की मर्जी के बिना न हो शादी
मुस्लिम महिलाओं ने कहा कि उनकी मांगों में पहली मांग है कि दो व्यवस्कों के बीच शादी होनी चाहिए और दुलहन की मर्जी और हामी के बिना शादी को पूरा नहीं माना जाए। शादी को दो व्यवस्कों के बीच सहमति के आधार पर करार माना जाए न कि कोई संस्कार।
मुस्लिम विवाह का हो रजिस्ट्रेशन
सभी मुस्लिम विवाह पंजीकृत होने चाहिए। इकरारनामा एक लाजमी दस्तावेज होना चाहिए। मुस्लिम महिलाओं ने कहा कि दूल्हे की वार्षिक आय दुल्हन को उसकी मेहर (पत्नी को देने के लिए तय की गई राशि) के रूप में दी जानी चाहिए।
BMMA की सह-संस्थापक ज़किया सोमन ने कहा, ‘मेहर दिए जाने से पहले विवाह संपन्न नहीं हो सकता है और अगर दूल्हे का परिवार दावतों पर इतना खर्च कर सकता है, तो वह निश्चित रूप से मेहर का भुगतान कर सकता है।’
काजियों के रजिस्ट्रेशन की मांग
एक अन्य मांग में निकाह संपन्न कराने वाली पंजीकृत महिला काजियों को मान्यता देना शामिल है। बीएमएमए की सह-संस्थापक नूरजहां सफिया नियाज ने कहा कि उनके संगठन को आंशिक जीत तब मिली जब केंद्र ने तीन तलाक पर कानून बनाया, जिससे तत्काल तलाक अवैध और दंडनीय हो गया। नियाज ने कहा कि हमने बहुविवाह और हलाला विवाह को भी अमान्य करने की मांग की। इस संबंध में हमारी याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
















