Home # MahaKumbh#India# UP प्रयागराज के महाकुंभ में त्रिवेणी के संगम स्नान करने वाले श्रद्धालुओं का...

प्रयागराज के महाकुंभ में त्रिवेणी के संगम स्नान करने वाले श्रद्धालुओं का जो हुजूम उमड़ा

21
0

साधु-संतों के संदर्भ में तिलक उनके संप्रदाय, साधना पद्धति और उनकी आध्यात्मिक धारा को सामने रखता है. इसी तरह महाकुंभ में भी जो संत समाज पहुंचा हुआ है, उनके भी मस्तक-ललाट पर अलग-अलग तरह के तिलक नजर आ रहे हैं. साधुओं को उनके तिलक से कैसे पहचाना जा सकता है और तिलक के कितने प्रकार होते हैं, यह जानना बेहद दिलचस्प है.

प्रयागराज के महाकुंभ में त्रिवेणी के संगम स्नान करने वाले श्रद्धालुओं का जो हुजूम उमड़ा हुआ है, वह हर-हर गंगे और हर-हर महादेव के घोष के साथ डुबकी लगा रहे हैं. स्नान के बाद जब वह बाहर निकलते हैं तो स्तुति-आचमन करते हैं और इस दौरान वह वहां घाट पर मौजूद पंडों या पुरोहित से तिलक लगवाते हैं. यह तिलक भारतीय संस्कृति की सबसे प्राचीन पहचान है

तिलक धार्मिक और सांस्कृतिक नजरिए से एक महत्वपूर्ण प्रतीक है. यह माथे पर चंदन, भस्म, हल्दी, या सिंदूर से बनाया जाता है. मान्यता है कि तिलक लगाने से मन की शुद्धता और एकाग्रता बढ़ती है. यह केवल साधुओं के लिए ही नहीं, बल्कि सामान्य जनमानस के लिए भी आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है. तिलक के महत्व को पद्म पुराण, स्कंद पुराण और कुछ अन्य उपनिषदों में विस्तार से शामिल किया गया है. तिलक का महत्व तिलक की महत्ता को ऐसे समझिए कि, पुराणों में इसे लेकर कहा गया है कि स्नान, दान, ध्यान, जप, होम, देवपूजा, पितृकर्म और सबसे अधिक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा, बिना तिलक के ये सभी प्रयोजन निरर्थक और निष्फल हैं. ‘स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च. तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना..’

भारतीय संस्कृति में तिलक केवल धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की पहचान, उसके संप्रदाय और उसकी आध्यात्मिकता का भी प्रतीक है. विशेष रूप से साधु-संतों के संदर्भ में तिलक उनके संप्रदाय, साधना पद्धति और उनकी आध्यात्मिक धारा को सामने रखता है. इसी तरह महाकुंभ में भी जो संत समाज पहुंचा हुआ है, उनके भी मस्तक-ललाट पर अलग-अलग तरह के तिलक नजर आ रहे हैं. साधुओं को उनके तिलक से कैसे पहचाना जा सकता है और तिलक के कितने प्रकार होते हैं, यह जानना बेहद दिलचस्प है.

कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में विभिन्न संप्रदायों के साधु-संत इकट्ठा होते हैं. तिलक उनके संप्रदाय और पूजा पद्धति को पहचानने में मदद करता है. अगर साधु के माथे पर भस्म का त्रिपुंड है, तो वह शिव भक्त या शैव संप्रदाय का साधु होगा. अगर तिलक चंदन से बना है और “ऊर्ध्वपुंडू” के रूप में है, तो वह वैष्णव संप्रदाय का साधु होगा. लाल कुमकुम या सिंदूर का तिलक देवी के भक्तों या तांत्रिकों का संकेत देता है. नागा साधु, जो कुंभ का प्रमुख आकर्षण होते हैं, भस्म से सने होते हैं और उनका तिलक उनकी तपस्या को दर्शाता है, जो कि शैव त्रिपुंड तिलक होता है.

तिलक हमेशा शुद्धता और श्रद्धा के साथ लगाया जाता है. तिलक लगाने से पहले साधु स्नान और ध्यान करते हैं. हर तिलक के साथ एक मंत्र या भजन का उच्चारण किया जाता है. ‘कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभं, नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणुः करे कंकणम्.’ यह श्लोक श्रीकृष्ण को समर्पित है, जिसमें उनकी महिमा का वर्णन किया गया है और तिलक के साथ उनके स्वरूप की व्याख्या की गई है. इसमें कहा गया है कि मस्तक के पटल पर कस्तूरी तिलक है. हृदय पर कौस्तुभ मणि धारण किए हैं. नाक में सुंदर मोती है. कलाई में कंगन और, हाथ में बांसुरी सुशोभित है. आप इस भक्त को भी इन्हीं आभूषणों की तरह स्वयं में धारण करें. हे श्रीकृष्ण, तिलक लगाकर मुझे स्वीकार करें. तिलक लगाने के क्या हैं नियम? शास्त्रों के अनुसार तिलक लगाने में उंगली का विशेष महत्व होता है. जो व्यक्ति मोक्ष की इच्छा रखते हैं उन्हें अंगूठे से तिलक लगाना चाहिए. धन की कामना है तो मध्यमा उंगली से तिलक लगाएं. सुख-शांति की प्राप्ति के लिए अनामिका उंगली से तिलक करें. देवताओं को मध्यमा उंगली से तिलक लगाना चाहिए. शत्रु पर विजय की कामना है तो तर्जनी उंगली से ललाट पर तिलक लगाना चाहिए. हमेशा तिलक को अनामिका यानि छोटी उंगली के बगल वाली उंगली से लगानी चाहिए. दूसरे के माथे पर तिलक लगाते समय व्यक्ति को अंगूठे का प्रयोग करना चाहिए. यही सही विधि है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here