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जीवन में संयम और सदाचारिता का समावेश ही भक्ति है – श्री प्रेमाचार्य ‘पीतांबर जी’ महाराज

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कटिहार जिला के हसनगंज प्रखंड में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के आज तीसरे दिन कथा सुनाते हुए व्यास पीठ से अंतर्राष्ट्रीय कथा प्रवक्ता श्री प्रेमाचार्य ‘पीताम्बर जी’ महाराज ने बताया कि जीवन में संयम एवं सदाचारिता का समावेश ही भक्ति है। भक्ति केवल हमारे निर्मल मन द्वारा ही संभव है। हमें हमारे विचारों की शुचिता ही अन्य से श्रेष्ठतम बनाते हैं। इसलिए शुद्ध विचार को धारण करना हमारा प्रथम प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी स्थान पर बिना निमंत्रण जाने से पहले हमें इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि जहां हम जा रहे हैं वहां हमारा, हमारे इष्ट या गुरु का अपमान तो नहीं हो रहा है। यदि ऐसा होने की आशंका है तो उस स्थान पर न जाना ही श्रेयस्कर है। चाहे वह स्थान हमारे अपने जन्मदाता पिता का ही घर क्यों न हो। इस क्रम में सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा।  उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए  स्वामी जी महाराज ने समझाया कि भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए उन्होंने बताया कि भक्ति के लिए कोई भी उम्र बाधा नहीं है। इसलिए हमें भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए। बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। कथा के दौरान उन्होंने कहा कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद्भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया गया है। अजामिल उपाख्यान के माध्यम से उन्होंने इस बात को विस्तार से समझाया। साथ ही साथ प्रह्लाद चरित्र के बारे में विस्तार से सुनाते हुए उन्होंने बताया कि भगवान नृसिंह रुप में लोहे के खंभे को फाड़कर प्रगट होना इस बात का प्रमाण है कि प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंभे में भी हैं और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की। महाराज जी ने कथाक्रम में महाभारत व  रामायण से जुड़े विभिन्न रोचक  प्रसंग भी सुनाए जिनकी जरूरत आज हम सभी को है।  उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि परम सत्ता में विश्वास रखते हुए हमेशा सद्कर्म करते रहना चाहिए। कथा में हजारों श्रद्धालु उपस्थित होकर कथा लाभ ले रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि श्रीमद्भागवत महापुराण के आज तीसरे दिन प्रवचन सुनने के लिए आस-पास का पूरा क्षेत्र ही  उमड़ पड़ा है। कथा के अंत में भक्त ध्रुव के सत्कर्मों की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि ध्रुव की साधना,उनके सत्कर्म तथा ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के परिणाम स्वरूप ही उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त हुआ। इसलिए हमें अपना तन, मन और धन, सबकुछ भगवान के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए।

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