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कटिहार में कृष्ण जन्माष्टमी की धूम: 200 साल पुरानी परंपरा आज भी जीवंत |मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सजा शहर

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नमस्कार दोस्तों, आप देख रहे हैं Nation News आज हम बात करेंगे कटिहार की उस धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की, जहां कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। खास बात यह है कि यहां 200 साल पुरानी परंपरा आज भी पूरे नियम और विधि-विधान के साथ निभाई जाती है।

कटिहार शहर में इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़ी ही धूमधाम और श्रद्धा भाव के साथ मनाया गया। शहर के विभिन्न इलाकों में धार्मिक कार्यक्रमों के साथ-साथ मेलों का भी आयोजन किया गया, जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।

लेकिन इस बार सबसे ज्यादा चर्चा का केंद्र बना शहर का बनिया टोला इलाका, जहां जन्माष्टमी की परंपरा पिछले 200 वर्षों से चली आ रही है। यहां का माहौल देखते ही बनता है। रंग-बिरंगी सजावट, भजन-कीर्तन और धार्मिक उत्साह पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देता है।

मंदिर परिवार से जुड़े मुख्य सदस्य विप्रोदीप ने जानकारी देते हुए बताया कि पहले यहां केवल कान्हा की एक छोटी सी कुटिया हुआ करती थी। समय के साथ यह स्थल एक भव्य मंदिर में परिवर्तित हो गया। लेकिन खास बात यह है कि भले ही स्वरूप बदल गया हो, परंपरा और रीति-रिवाज आज भी वही हैं, जैसे 200 साल पहले निभाए जाते थे।

यहां जन्माष्टमी की रात को महिलाएं रात्रि जागरण करती हैं। पूरी रात भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ माहौल गूंजता रहता है। अगले दिन यानी पर्व के समापन पर यहां सिंदूर खेला की विशेष परंपरा निभाई जाती है, जिसमें महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर बधाई देती हैं और श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की खुशियां साझा करती हैं।

स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यही वजह है कि जन्माष्टमी पर दूर-दराज के इलाके से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं।

मेले में झूले, दुकानें और बच्चों के मनोरंजन के लिए विशेष आकर्षण देखने को मिला। वहीं धार्मिक नाट्य मंचन और भजन मंडलियों के कार्यक्रमों ने भक्तों को देर रात तक बांधे रखा।

कटिहार के बनिया टोला की यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन भर नहीं है, बल्कि यह स्थानीय समाज को जोड़ने और भाईचारे का संदेश देने का एक बड़ा माध्यम भी है। यहां हर वर्ग और हर समुदाय के लोग मिलजुल कर इस पर्व में शामिल होते हैं और श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की खुशियां मनाते हैं।

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