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चंकी पांडे और Anupam Kher ने असली जिंदगी में कभी नहीं मानी हारी, बढ़ती उम्र का नहीं कोई असर

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सपनों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती। उम्र कोई भी हो, सपने देखने और उसे पूरा करने का जज्बा जरूरी है। यही संदेश देती है अनुपम खेर (Anupam Kher) और चंकी पांडेय (Chunky Pandey) अभिनीत फिल्म ‘विजय 69’ (Vijay 69)। इस फिल्म, कभी हार न मानने का जज्बा जैसे मुद्दों पर इन कलाकारों ने हाल ही जागरण के मंच पर खुलकर बात की है।
अनुपम, आपने 28 साल की उम्र में पहली फिल्म ‘सारांश’ में 65 साल के बुजुर्ग की भूमिका निभाई थी। अब अपनी उम्र का किरदार निभा रहे हैं। क्या फर्क पाते हैं?
‘सारांश’ के दौरान मैं 28 साल का था। तब जवानी वाली एनर्जी थी, जो उस फिल्म में लगा दी थी। मगर ‘विजय 69’ में 69 साल के रोल के लिए मुझे 28 साल की एनर्जी डालनी पड़ी। अब जो कर रहा हूं, उसका श्रेय हमारे लेखक-निर्देशक अक्षय राय को जाता है। जब मुझे स्क्रिप्ट दी गई, तो लगा कि यह मेरी जिंदगी के समानांतर कहानी है। समाज के जो ढर्रे होते हैं, यह उन्हें तोड़ती है। न केवल मेरी उम्र के लिए, बल्कि यह फिल्म युवाओं के लिए भी है।
आपके लिए उम्र को आसानी से आत्मसात करने का मंत्र क्या रहा है?
चंकी: मैं तो बढ़ती उम्र को स्वीकार करने के लिए ही तैयार नहीं हूं।
अनुपम: हम उम्र को स्वीकार करें ही क्यों। आप महात्मा गांधी से तो नहीं पूछते थे कि उस उम्र में देश को स्वतंत्रता दिलाई। क्लिंट ईस्टवुड से नहीं पूछते, जिन्होंने 93 की उम्र में निर्देशन किया। यह सब फिल्मी दुनिया के लोगों को लगता है कि हीरो 20- 22 साल का होना चाहिए।
अनुपम: महान पत्रकार के. अब्बास 80 साल की उम्र में भी अपना स्तंभ लिखते थे। उम्र तो अपने आप स्वीकार हो जाती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि आप लड़ना बंद कर दें।
चंकी: मुझे लगता है कि हर कलाकार में एक बच्चा होता है। उसकी वजह से हम कुछ भी कर पाते हैं। उस बच्चे को कभी बड़ा नहीं होना चाहिए। यही कलाकारों को युवा बनाए रखता है।
जिंदगी की दूसरी पारी में काफी कुछ बदल जाता है। चंकी, आपने तो बांग्लादेश में फिल्में कीं। वहां जाने के बारे में कैसे सोचा?
चंकी : मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी हिट फिल्म ‘आंखें’ के बाद मुझे काम ही नहीं मिला। मैं चिड़चिड़ा हो गया। तब एक शो के लिए बांग्लादेश गया। वहां मुझे एक फिल्म ऑफर हुई, जो अच्छी चल गई। फिर पांच-छह साल वहां टिका रहा। शादी के बाद पत्नी को बांग्लादेश हनीमून पर भी ले गया। उन्होंने कहा कि बेशक आप यहां सुपरस्टार हैं, लेकिन कभी न कभी सच्चाई का सामना करना पड़ेगा कि आप कहां से हो।
जब मैं लौटकर आया तो महसूस हुआ काफी लोग भूल गए थे। खुशकिस्मत रहा कि दूसरी पारी में मजेदार भूमिकाएं निभाने के मौके मिले। हां, दूसरी पारी हमेशा अलग होती है, इसे मैं पहली वाली से ज्यादा एन्जॉय कर रहा हूं। अब मैं अनुपम जी की डाक्टर डैंग जैसी भूमिकाएं करना चाहता हूं। मैंने इनके करियर से बहुत प्रेरणा ली है।
ट्रायथलान की ट्रेनिंग कैसी रही?
अनुपम: ट्रायथलान में आपको डेढ़ किलोमीटर तैरना होता है, 40 किलोमीटर साइकिल चलानी होती है और 14 किलोमीटर दौड़ना होता है। फिल्म में दौड़ और साइकिल रेस एक साथ नहीं थी। मुझे तैरना नहीं आता, तो शूटिंग से पहले तीन-चार महीने का जो समय था, उसमें सीख ली। मुझे हमेशा से लगता है कि इंसान को अपनी हदें तब तक पता नहीं चलतीं, जब तक कि वो कोशिश न करे।
चंकी: आज मामला अलग है। अब डिजिटल की दुनिया है। आज कोई भी स्टार बन सकता है। फिल्म स्टार और डिजिटल स्टार के बीच अंतर कम हो गया है। हालांकि मूल रूप से एक्टिंग और परफार्मेंस की प्रतिभा हमेशा रहेगी।
अनुपम: नई पीढ़ी बहुत अनुशासित है। उन्हें बस यह समझने की जरूरत है कि निराशा से कैसे डील करें। हम इतने सालों से निराशा झेल-झेलकर यहां तक पहुंचे हैं। अब हम हंसते हैं, क्योंकि हमने हार नहीं मानी। सपनों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती है।
आप दोनों ने अपनी किन खामियों पर विजय हासिल की है?
अनुपम: जिंदगी हर कदम एक नई जंग है। रोज घर से निकलना, अपने काम पर जाना, खुश और शांत रहना उपलब्धि है।
चंकी: मेरा सबसे गौरवान्वित क्षण वह था, जब मैं अनन्या का पिता बना था। जब मेरे पिता ने यह बताया था, तब मैं उनका एक्साइटमेंट समझ नहीं पाया था। वह हार्ट सर्जन थे। एक बार उन्हें हार्ट सर्जन कांफ्रेंस में चंकी पांडेय के पिता के तौर पर बुलाया गया, तो वो बहुत खुश हुए थे। आज अनन्या के साथ वह बात समझ आती है।

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