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धार्मिक परंपरा ही नहीं प्रकृति के लिए समर्पण का है महापर्व छठ

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प्रकृति और मानव के अद्भुत संगम का महापर्व छठ को लेकर प्रखंड क्षेत्र मे उत्साह का माहौल व्याप्त है। महंगाई के दौर मे भी आस्था भारी दिखा। नहाय खाय के बाद खड़ना पूजा के साथ आज ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा इसके उपरांत शुक्रवार को उगते भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही 36 घंटे का निर्जला चार दिवसीय महापर्व का पारण कर इसका समापन किया जाएगा। यह एक ऐसा महापर्व है,जिसमें प्रकृति से मिलकर उनके सौंदर्य और शैली को अपनाकर इस महापर्व को मनाया जाता है। लोक आस्था का महापर्व छठ न केवल मनुष्य को प्राकृतिक भावनाओं के साथ जोड़ता है। बल्कि प्रकृति के नजदीक जाकर उसे समझने का अवसर भी देता है। जहां उगते सूर्य को ही नहीं बल्कि ढलते सूर्य की भी पूजा की जाती है। नदी,तालाबों मे मनाया जाने वाला यह महापर्व छठ ऊंच नीच,अमीर गरीब आदि के भेदभाव से दूर कर हमारी संस्कृति के अभिन्न हिस्से को दर्शाती है। जहां हर तबके के लोग नदी तालाबों मे एक घाट पर बिना किसी भेद भाव के साथ मिल जुलकर महापर्व को मनाते और सम्पन्न करते हैं। यह महापर्व प्रकृति के प्रति समर्पण भाव को दिखाने का जरिया है। छठ का महापर्व प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा है। जिसमें चढ़ाई जाने वाली चीजें मनुष्यों को प्रकृति द्वारा उपहार मे प्राप्त हुआ है।

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