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वट सावित्री पूजन करती सुहागिन

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प्रकृति के प्रति समर्पण को दर्शाता सौभाग्य वृद्धि एवं पतिव्रत संस्कारो का प्रतीक वट सावित्री का व्रत हसनगंज प्रखंड सहित राजवाड़ा व रौतारा पंचायत मे हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। सनातन धर्म मे सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य व पति की लंबी आयु सहित सुखी दांपत्य जीवन के लिए अनेकों व्रत का पालन करती है। जिसमे ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री का व्रत इन्ही वर्तों मे एक है,जो सावित्री एवं इनके पति स्त्यवान को समर्पित है। जिस वट सावित्री का व्रत कर सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षार्थ कामना करती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वट वृक्ष (बरगद का पेड़) के नीचे सावित्री के मृत पति सत्यवान को दुबारा जीवन प्राप्त हुआ था। साथ ही इनके सास और ससुर को दिव्य ज्योति व खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त हुआ था। जिस वजह से आज भी सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष को प्रतीक मानकर अपने अखंड सुहाग की रक्षा व सुखी दांपत्य जीवन की कामना के साथ वट वृक्ष के नीचे पूजा करती आ रही है।
परंतु वट सावित्री के व्रत में पूजे जाने वाले विशाल बरगद का पेड़ अब यदा कदा ही देखने को मिलता है। पर्यावरण के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माने जाने वाला यह विशाल वट वृक्ष अब त्यौहारी बनकर गमलों में सिमटने लगा है। सैकड़ो वर्ष पूर्व धार्मिक व औषधीय महत्व को लेकर पूर्वजों के द्वारा लगाए गए बरगद के अक्सर पेड़ धराशाही हो गया तो कुछ सुख गया।ज्यादा जगह लेने की वजह से अब लोग बरगद का पेड़ नही लगाते हैं। जिस वजह से वट सावित्री पूजन के दौरान अब ऐसे वट वृक्ष गमलों में सिमटने लगा है और कहीं वट वृक्ष है भी तो वहां तक पहुंचने के लिए दूरी तय करना पड़ रहा है।

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