भारत-नेपाल सीमा पर स्थित जोगबनी बॉर्डर इन दिनों जिस संकट से जूझ रहा है, वह केवल सीमावर्ती नागरिकों की कठिनाई नहीं, बल्कि दो देशों के बीच सामाजिक, व्यापारिक और मानवीय रिश्तों की बुनियाद पर सीधा प्रहार है। जमीनी हालात यह हैं कि जोगबनी बॉर्डर पर हर दिन हजारों लोग सीमा पार करते हैं, लेकिन अतिक्रमण, अव्यवस्थित ट्रैफिक और प्रशासनिक लापरवाही ने इसे जनजीवन के लिए खतरे का क्षेत्र बना दिया है। इस ज्वलंत समस्या को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता प्रभात यादव ने अनुमंडल पदाधिकारी फारबिसगंज के माध्यम से केंद्रीय गृह मंत्री को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा है, जिसमें उन्होंने जोगबनी सीमा क्षेत्र की जमीनी सच्चाई को सामने लाते हुए वैकल्पिक मार्ग निर्माण, अतिक्रमण हटाने और आपातकालीन सेवाओं के लिए विशेष व्यवस्था की मांग की है। अररिया जिले का जोगबनी बॉर्डर नेपाल के विराटनगर से सीधा जुड़ा है। सीमावर्ती क्षेत्रों खासकर अररिया, फारबिसगंज, सहरसा, मधेपुरा और सुपौल के लोग नेपाल में चिकित्सा, व्यापार और पारिवारिक कार्यों के लिए प्रतिदिन इस मार्ग का उपयोग करते हैं। जोगबनी हमेशा से भारत-नेपाल के रोटी-बेटी संबंध का जीता-जागता उदाहरण रहा है, लेकिन अब यहां का ट्रैफिक इतना अव्यवस्थित हो चुका है कि पैदल चलना भी एक चुनौती बन गया है। प्रभात यादव द्वारा दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि अवैध अतिक्रमण सड़क पर फैली दुकानें, ठेले, ऑटो और ट्रकों की कतारें ये सब मिलकर बॉर्डर को एक खुली जेल में तब्दील कर चुके हैं। सबसे बड़ी चिंता यह है कि एम्बुलेंस जैसे आपातकालीन वाहन भी कई बार घंटों तक जाम में फंसे रहते हैं, और मरीजों की जान जोखिम में पड़ जाती है। ज्ञापन में उल्लेख है कि जोगबनी बॉर्डर पर वर्षों से सड़क के दोनों किनारों पर ठेला व्यवसायियों और फुटपाथ दुकानों ने अतिक्रमण कर रखा है। सड़क चौड़ी नहीं है, और जो भी थोड़ी-बहुत जगह बची है, वह अवैध पार्किंग और ट्रैफिक की लहर में खो चुकी है।आईसीपी की स्थापना जरूर हुई है, लेकिन इसका समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। चारपहिया वाहनों के लिए कोई अलग रास्ता नहीं है, निजी गाड़ियों और एम्बुलेंस को एक ही लेन से गुजरना पड़ता है। इसका नतीजा है हर दिन का अराजक जाम, जिसमें सबसे अधिक नुकसान आम जनता को उठाना पड़ता है। प्रभात यादव ने गृह मंत्री को भेजे गए ज्ञापन में केवल समस्या नहीं बताई, बल्कि उसका चरणबद्ध और व्यावहारिक समाधान भी प्रस्तुत किया है, जिससे जमीनी स्तर पर राहत मिल सके नेपाल से भारत की ओर आने वाले पुराने सीमा मार्ग का चौड़ीकरण और पक्कीकरण कराया जाए, ताकि भारी वाहनों और यात्री गाड़ियों के लिए अलग रास्ता सुनिश्चित हो। संपूर्ण सीमा मार्ग पर वन-वे अथवा अप-डाउन ट्रैफिक व्यवस्था लागू की जाए, ताकि ट्रैफिक का नियंत्रण बेहतर हो सके।आईसीपी होकर चारपहिया वाहनों, विशेषकर एम्बुलेंस के लिए एक अलग वैकल्पिक मार्ग का निर्माण किया जाए, जिससे आपातकालीन सेवाएं बाधित न हों। सड़क किनारे अस्थायी दुकानों, ठेले-फेरी वालों का नियोजित पुनर्वास हो, ताकि व्यवसाय भी सुरक्षित रहे और सड़क भी अतिक्रमणमुक्त हो सके। प्रभात यादव का मानना है कि स्थानीय प्रशासन की सीमाएं हैं, लेकिन अगर केंद्र सरकार इस मुद्दे को प्राथमिकता दे, तो सीमावर्ती क्षेत्र में एक मॉडल ट्रैफिक एवं सुरक्षा व्यवस्था लागू की जा सकती है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि प्रशासन समय-समय पर औपचारिक अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाता है, लेकिन वह केवल कुछ दिनों की सख़्ती तक सीमित रह जाता है। पुनर्वास की स्पष्ट नीति न होने के कारण ठेला व्यवसायी दोबारा सड़क पर लौट आते हैं। न तो पक्की पार्किंग व्यवस्था है, न कोई नियोजित फुटपाथ मार्केट। ऐसे में, जब व्यापार, यातायात और सुरक्षा सब एक ही मार्ग पर निर्भर हों, तो असुविधा अनिवार्य हो जाती है। ज्ञापन में प्रभात यादव ने एक भावनात्मक अपील भी की है। उन्होंने लिखा है कि भारत और नेपाल का रिश्ता केवल दो देशों के बीच का राजनयिक संबंध नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जुड़ाव का एक ऐतिहासिक धागा है। जोगबनी जैसे सीमावर्ती क्षेत्र इन रिश्तों के जीवंत प्रतीक हैं, जहाँ रोज़मर्रा की जिंदगी दोनों देशों को जोड़ती है।उन्होंने कहा, जब सीमा ही बाधित हो जाए, तो केवल यातायात नहीं, बल्कि विश्वास और सहजीवन की भावना भी प्रभावित होती है। ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि सीमावर्ती क्षेत्रों को प्राथमिकता दें, उन्हें सुरक्षित, व्यवस्थित और मानवीय बनाएं।